गीता प्रेस, गोरखपुर >> संत समागम संत समागमस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक संत समागम से प्राप्त होने वाले प्रभाव व उनसे मिलने वाले गुण को प्रदर्शित करते हुए पढ़ने वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नम्र निवेदन
ब्रह्मलीन परम श्रद्वेय स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज के सशरीर उपस्थित
रहते समय ऐसे कई लेख लिखे गये थे, जो उनके सामने प्रकाशित नहीं हो सके।
कुछ लेख ‘कल्याण’ मासिक-पत्र में प्रकाशित हुए थे।
कुछ
प्रश्नोंत्तर लिखे हुए थे। उनमें से कुछ सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में
प्रकाशित की जा रही है।
स्वामीजी महाराज के सामने जो भी पुस्तकें लिखी जातीं थीं, उन्हें प्रकाशित होनेसे पूर्व वे एक-दो बार अवश्य सुन लेते थे और उनमें आवश्यक संशोधन भी करवा देते थे। कहीं किसी बातकी कमी ध्यान में आती तो उसकी पूर्ति करवा देते थे और कहीं कोई विषय स्पष्ट नहीं हुआ हो तो उसका स्पष्टीकरण लिखवा देते थे। परन्तु अब ऐसा सम्भव नहीं है। इसलिये प्रस्तुत पुस्तक में कुछ कमियाँ रह सकती हैं। आशा है, इसके लिये पाठक क्षमा करेंगे और स्वामीजी महाराज भावों को और भी समझने के लिये उनकी अन्य पुस्तकों का अध्ययन करेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक में साधकों के लिये उपयोगी अनेक गूढ़ विषयों का उद्घाटन हुआ है। पाठकों से निवेदन है कि वे इस पुस्तक का मनोयोगपूर्वक अध्ययन करके लाभ उठायें
स्वामीजी महाराज के सामने जो भी पुस्तकें लिखी जातीं थीं, उन्हें प्रकाशित होनेसे पूर्व वे एक-दो बार अवश्य सुन लेते थे और उनमें आवश्यक संशोधन भी करवा देते थे। कहीं किसी बातकी कमी ध्यान में आती तो उसकी पूर्ति करवा देते थे और कहीं कोई विषय स्पष्ट नहीं हुआ हो तो उसका स्पष्टीकरण लिखवा देते थे। परन्तु अब ऐसा सम्भव नहीं है। इसलिये प्रस्तुत पुस्तक में कुछ कमियाँ रह सकती हैं। आशा है, इसके लिये पाठक क्षमा करेंगे और स्वामीजी महाराज भावों को और भी समझने के लिये उनकी अन्य पुस्तकों का अध्ययन करेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक में साधकों के लिये उपयोगी अनेक गूढ़ विषयों का उद्घाटन हुआ है। पाठकों से निवेदन है कि वे इस पुस्तक का मनोयोगपूर्वक अध्ययन करके लाभ उठायें
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